सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें केंद्र को पश्चिम बंगाल में मनरेगा योजना फिर से शुरू करने का निर्देश दिया गया था। यह योजना 2022 से धन के कथित गबन के आरोपों के कारण बंद पड़ी थी। हाईकोर्ट ने जून में यह आदेश दिया था, जिसे अब शीर्ष अदालत ने सही ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने केंद्र सरकार की अपील खारिज कर दी, जिसमें हाईकोर्ट के 18 जून के आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा, “हम इस बात से आश्वस्त नहीं हैं कि इस आदेश में कोई हस्तक्षेप की आवश्यकता है।” हाईकोर्ट ने योजना को 1 अगस्त 2025 से लागू करने का आदेश दिया था, साथ ही केंद्र को जांच जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन योजना को स्थायी रूप से बंद न रखने पर जोर दिया।
हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगा खेत मजदूर समिति की याचिका पर यह फैसला सुनाया था, जिसमें दैनिक मजदूरों को बकाया भुगतान न मिलने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने कहा, “कानून की योजना ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं करती जहां इसे अनंत काल के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए... अतीत की कार्रवाइयों और भविष्य के कदमों के बीच एक रेखा खींची जा सकती है।”
योजना 2022 से बंद थी क्योंकि कथित भ्रष्टाचार के कारण केंद्र ने इसे रोक दिया था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि व्यापक भ्रष्टाचार के कारण हाईकोर्ट को योजना फिर शुरू करने का निर्देश नहीं देना चाहिए था। हालांकि, पीठ ने अपील खारिज कर दी।
तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत किया। एक्स पर पोस्ट में उन्होंने कहा, “हमारे बकाया भुगतान सुप्रीम कोर्ट के कहने के बाद भी जारी नहीं किए गए, बंगाल उठेगा और दिल्ली के रास्ते पर फिर लड़ाई लड़ेगा। जमींदार वोट और अदालत में गिर चुके हैं, फिर भी वे ईडी और ईसी के समर्थन से खेल खेलते हैं।”
यह फैसला ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, जो 100 दिनों का काम सुनिश्चित करती है।